के किसी ने पूछा क्यूं रोए तेरे नैन आज?
क्यों सिसकियां भरने लगा है तू,
क्यों मन है अचानक तेरा भारी सा?
सवाल तो है साधा, लेकिन शायद
इसका उत्तर नही आसान...
के किसी से छुपी नहीं
पर कहानी रह ही गई अनदेखी!
पूछे ये जो, उन्हें कैसे बतलाऊ हाल मेरा,
के ना मुझे वो जाने,
ना देखे मेरे टूटे बिखरे पंख
जब ना है आलम उन्हें मेरे दुख का
तो कैसे समजाऊ के क्यो हूं मैं
आज थका हारा सा!
के जब तू सोए, तू देखे सपने सुहाने
पर रात्री के वक्त ही भागे मेरे विचार,
के जब तू चले मखमल की चादर पर
मेरे तो पाव धूप मे तपतपे से
के जब खाए तू मीठे बेर,
व्रत से ही मेरा दिन निकला
के माया में उलझे नियती के ऐसे
जब तेरे हाथ भर रहे थे खुशियों से,
में बस तुझे सलाम करता रह गया|
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